अलाव की एक कहानी मेरे पास भी है, यह 3-4 जनवरी 2020 की बात है। मैं कॉलेज में फाइनल सेमेस्टर में था, मैं लोगों के बीच कम ही जाता था। हमारे गाँव में हर 2 से 9 जनवरी तक एक उत्सव होता है। यहाँ भगवन् नाम कीर्तन चलता है। यज्ञ होता है और श्री राम चरित अथवा श्री कृष्ण चरित पर प्रवचन होते हैं। दिन में बहुत भीड़ जुड़ती है। ओर पास के लोग आनंद मग्न रहते है। एक दूसरे से मिलते है, नई पहचाने बनती हैं। पर रात में कीर्तन क लिए कम ही लोग पहुँचते अब वहाँ ठंड में मरने कौन जाए। उस दिन मैं गया था। दिन में तो जाता ही था पर उस दिन रात को भी गया था। पहाड़ी पर जंगल के बीच निचले इलाके संठंड कम लगती है, पर इतनी भी कम नहीं लगती कि वहाँ कहीं बैठा जाए। फिर भी काँपने लगते हैं। मैं कीर्तन भवन से निकला और ठंड में अकड़ने लगा, कीर्तन भवन तो पैक था, ठंड नहीं लगती थी पर बाहर तो चेहरा चीखने लगता था। सो मैं अलाव की तरफ दौड़ा। कीर्तन भवन के पीछे कुए के पास मोटी-मोटी लकड़ियों से अलाव प्रकाश मान था, वहाँ तीनों गाँवों के व्यक्ति थे। मैं बैठ गया। तभी वहाँ रघुवीर आ गया, पागल है, कुछ भी करता है। उसका सब मजाक उड़ाते पर उसे समझ नहीं आता है। जब मैं छीरखेड़ा पढ़ने जाता था तब वह पागल नहीं था, बाद में 2014-15 में उसकी बुद्धि सटक गई थी। वैसे वह अकेला ही घूमता है, कहीं भी घूमता है, फटे पुराने मैले कपडे पहनता है। वह वहीं मेरे पास बैठ गया, मैं डर गया। पर फिर मुझे ध्यान आया, कि वह हिंसात्मक नहीं है।