ओ रे पंछी

ओ रे पंछी

अंकित किरार

18,68 €
IVA incluido
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Editorial:
Draft2Digital
Año de edición:
2024
ISBN:
9798227936561

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नमस्ते, मेरा नाम अंकित किरार है। मैं बहुत खुश हूँ, क्योंकि मैंने कुछ अच्छी कविताएं लिखी हैं। जो इस संग्रह में है। यह सारी कविताएं मेरी गद्य रचनाओं से ली गईं हैं। यह गद्य में स्वतंत्र नहीं थीं, वहाँ इनका अलग मतलब था पर यहाँ संग्रह के रूप में इकठ्ठा होने के बाद इन्होंने बहुत व्यापक अर्थ पा लिया है। अब यह यहाँ मेरी बातों, मेरी घटनाओं से ऊपर हैं। इनमें मैं मेरी भावनाएं, अच्छे से व्यक्त कर पाया हूँ। वैसे यदि मैं सिर्फ कविता लिखने बैठता हूँ तो उस समय इतने अच्छे से व्यक्त नहीं कर पाता हूँ, पर जब मैं गद्य लेखन कर रहा होता हूँ तो पूरी तरह आत्मा से जुड़ जाता हूँ। इसी में बहुत खुशी होने लगती है और कविता खुद ही फूट पड़ती है। यह सब ऐसी ही कविताएं हैं, सब खुशी के कारण जन्मी हैं। इन्हें मैंने लिखने का प्रयत्न नहीं किया है। यर स्वयं ही अवतरित हुई हैं। इस संग्रह की ज्यादातर कविताएं मेरे मथुरा-दिल्ली-आगरा यात्रावृत की हैं और शुरूआत की दस कविताऐं एक कहानी की हैं जो मेरे गाँव पर आधारित है। सभी कविताएं अलग-अलग हैं और कुछ तो मुझे बहुत ही अच्छी लगी,जैसे इस संग्रह की पहली ही कविता मेघा मेघा, मुझे बहुत अच्छी लगी। यह धान लगाने के समय पर लिखी थी। जब मैं चारा लेने जाता था। चारा काटें अंकित जी,और नदिया धान लगाए हो,सौंधी मिट्टी पंक बनेतब पंकज मन मुस्काए हो,नाचें-झूमें बढ़ते जाऐं,पेड़-पौधे सब हँसते जाएं,पर पपीहा की प्यास बुझे नहीं,तड़प-तड़प कर वो चिल्लाए।मेघा-मेघा,ओ मेघा-मेघा,रे मेघा-मेघा,हाँ मेघा। इसके बाद एक और कविता,’'मामा मुझे बिठा दो बस में अपने गाँव जाऊँगा।' भी मुझे बहुत पसंद यह, देखिए पेड़ गाँव के सब देखूँगा,आमों की डाली कूदूँगा,चिड़ियां मैं बन जाऊंगा।मम्मी मेरी कितनी प्यारी,उनकी लो

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